तेरी वो मुस्कान
तेरी वो मुस्कान,मेरे दिल को हार ले गयी |
जब तुम्हे मैं देखता हूँ,
नयन मेरे थम से जाते |
फिर ना होता और कोई,
मुझपे मानो कहर ढाते |
पास जब तुम रहती हमारे
खो से जाते मित्र सारे |
मेरी दुनिया डूब जाती,
तुम खरी होती किनारे |
और जब मुख पर तुम्हारे,
इक सुनहरा हास्य आता |
गूँज उठता हृदय मेरा,
अनकहा सा नशा छाता |
नज़र तेरी यदि मुझपर,
भटकती हुई, छूती जाती |
एक पल को नब्ज़ मेरी,
धरकना भी भूल जाती |
कशमकश होती सदा है,
कुछ तो तुमसे बात कर लूँ |
छा गया तो मर्ज मुझपर,
इस दर्द का इलाज कर लूँ |
पर ये मेरा दिल जो ठहरा,
ये हक़ीकत जानता है |
दूर हो तुम जिस वजह से,
यह उसे पहचानता है |
अतः जो अरमान मेरे,
दिल के गहरों में छिपें हैं |
तेरी उस मुस्काती छवि से,
उस जख्म पर छिरकाव कर लूँ |
मूढ़ हूँ मैं, मानता हूँ,
छा चुकी तुम मुझपर जो इतना |
इस मूढ़ता में, तज अहम को,
निज प्रेम का अवदन कर लूँ |
निज प्रेम का अवदन कर लूँ |
for whom u v written this....uski photo lagao...plzzzzzzz.........:P
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