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Wednesday, 4 May 2011

Teri wo muskan

तेरी वो मुस्कान



तेरी वो मुस्कान,मेरे दिल को हार ले गयी |

जब तुम्हे मैं देखता हूँ,
नयन मेरे थम से जाते | 
फिर ना होता और कोई, 
मुझपे मानो कहर ढाते |

पास जब तुम रहती हमारे 
खो से जाते मित्र सारे | 
मेरी दुनिया डूब जाती,
 तुम खरी होती किनारे |

और जब मुख पर तुम्हारे,
 इक सुनहरा हास्य आता | 
गूँज उठता हृदय मेरा, 
अनकहा सा नशा छाता |

नज़र तेरी यदि मुझपर,
 भटकती हुई, छूती जाती |
एक पल को नब्ज़ मेरी, 
 धरकना भी भूल जाती |

कशमकश होती सदा है,
 कुछ तो तुमसे बात कर लूँ |
छा गया तो मर्ज मुझपर,
 इस दर्द का इलाज कर लूँ |

पर ये मेरा दिल जो ठहरा,
ये हक़ीकत जानता है |
 दूर हो तुम जिस वजह से,
 यह उसे पहचानता है |

अतः जो अरमान मेरे,
 दिल के गहरों में छिपें हैं |
तेरी उस मुस्काती छवि से,
 उस जख्म पर छिरकाव कर लूँ |

मूढ़ हूँ मैं, मानता हूँ, 
छा चुकी तुम मुझपर जो इतना |
इस मूढ़ता में, तज अहम को,
निज प्रेम का अवदन कर लूँ |


1 comment:

  1. for whom u v written this....uski photo lagao...plzzzzzzz.........:P

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