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Tuesday, 1 March 2011

Dil Ki Aas



माना, तुम मेरी नही
पर मेरे दिल की आस हो
मैं हूँ तेरा कुछ नही,
तुम मेरी साँस हो |


यूँ तो तुम तो गैर हो,
अनसुलझी तलाश हो
पर शायद तुम वाकिफ़ नही,
तुम कितनी खास हो |


जाना, खुद अंजान हूँ,
अभी तेरी डगर से मैं
फिर भी तुम तो बन चुकी,
होठों की हास हो |


माना, मैं नाचीज़ हूँ,
तुम महफ़िल की रास हो
पर तुम मेरी अनकही,
खोई सी प्यास हो |


मीलों दूरी है सदा,
तेरे-मेरे डगर में पर,
आँखें मुन्दे मैं वहाँ,
जहाँ तेरा वास हो |


इन नयनों को खोलकर,
सब चीज़ों को तोलकर,
तुम जब कहीं होती नही,
हमें करती उदास हो |


फिर भी तेरी याद सिर्फ़,
मेरे दुख की त्रास हो
जीवन के इस शुष्क में,
सावन का मास हो |


तेरा बस होना हमें,
जब इतना खुश कर गया
जो हो जाती तुम मेरी,
वो सुनहरी अहसास हो |

Dedicated to : Fatp, who inspired this poetry with grace and poise :P

3 comments:

  1. abe koi comment nahi karega... baar baar har place par link post karne se kuch nahi hoga :P

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  2. mast poem hai yaar....intense and sad...

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